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मैं बादल खींच के दिन ढँक दूँ,
सहला कर चाँद जवान करूँ...
उनके आँचल की बात लिखूँ,
इस धरती को आसमान करूँ...
जुगनूं संग खेलूँ लुका छिपी,
अंधियारे को रौशनदान करूँ...
मैं सींचू सदा उम्मीद ए दरख़्त,
क्यूँ ख़्वाब कोई सुनसान करूँ...
लो सुबक रही ये स्याह रात,
इसे तारों का गुलदान करूँ...
मैं लिखूँ अमन और खुशहाली,
जग में फिर नया बिहान करूँ...
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
Kalpnashilta ki udan me asambhav ko sambhav banane ka pryas...anupam rachna.
ReplyDeleteभावनाओ के समर्थन के लिए शुक्रिया सीमा जी...
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