Thursday, 27 April 2017

क्यूँ शर्मिन्दा हुआ जाये..?


बड़ी सिहरन सी होती है,
अगर इल्ज़ाम लग जाये...
सफाई देर तक देकर,
क्यूँ शर्मिन्दा हुआ जाये..?

ये मेरी काबिलियत है,

चुभे हर पल जो दुश्मन को...
कटघरे में खड़ा होकर,
क्यूँ मुज़रिम सा जिया जाये..?

कोई तो होगा वो इंसान,

जिसे हो कद्र मेरी भी...
चलो कुछ पल अकेले में,
संग उसके जिया जाये...

ये दुनिया मतलबी सी है,

अज़ब इसके हैं पैमाने...
घुटन का शौक जब ना हो,
क्यूँ फिर अपयश पिया जाये..?

मैं अपने राह चलता हूँ,

मगन रहता हूँ मस्ती में...
महज़ सुर्खियों की चाह में,
क्यूँ गफ़लत किया जाये...?

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

*9424142450#

Wednesday, 26 April 2017

उम्मीदों के सौ सपने...


मेरी खामोशियाँ ही अब, मेरी बातें सुनाती हैं,
दीवाना बन के तन्हाई, वो देखो गीत गाती हैं...

कभी गुजरा था राहों से, मंज़िल की चाहत में,

वही राहें पकड़ बाहें, मुझे मंज़िल दिखाती हैं...

वक़्त ने करवट, बदल क्या ली मेरे मालिक,

ख़ुशी बेताब मिलने को, शोहरत झूम जाती हैं...

कभी मज़बूर थी पलकें, संभल पाते नहीं आंसू,

वही आँखें उम्मीदों के, सौ सपने दिखाती हैं...

कभी था आशना हमको, महफ़िल की रौनक से,

हमें अब रौनक-ए-महफ़िल में, तन्हाई सताती है...

ज़रा नज़रें इनायत हो, रही ये आरज़ू 'रवीन्द्र',

वही मयकश गुल ए गुलज़ार, आँखों से पिलाती है...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

*9424142450#

Monday, 24 April 2017

चीख रहे बस्तर के साल...

रोया हूँ फिर आज सुबक के...
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रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...
मेरे खातिर कितनी माँ, खोएंगे अभी अपने लाल..?

मेरे मन की पीड़ा को, अब तो कुछ आराम मिले..?
झुलस रही कोशल की बगिया, अमन के सुंदर फूल खिले...
कब होगा दहशतगर्दों के, मन में रत्ती भर का मलाल..?
रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...

दलपतसागर में तैरो, तीरथगढ़ में स्नान करो...
दंतेश्वरी के दर्शन कर लो, चित्रकोट गुणगान करो...
पर ना उठने देना तुम, मेरे अस्तित्व पर ही सवाल...
रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...

सीना चीर के रख दूँगी, करो खनिज का उत्पादन...
होगी खुशियाँ और विकास, नहीं होगा किंचित भी रुदन...
शान्ति सरोवर से उपवन में, ना हो पाये कोई बवाल...
रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...

मेरी अस्मत के खातिर, कितने बेटे कुरबां होंगे..?
कितने आँगन उजड़ेंगे, कितनी खुशियाँ फ़ना होंगे..?
मत खेलो यूँ खून की होली, चीख रहे बस्तर के साल...
रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...

करो जतन ऐसा कुछ वीरों, दामन ना हो मेरे लाल...
बंजर ना हो दरभा, झीरम, फिर ना रोये बुर्कापाल...
कर दो आर पार की हालत, खत्म करो ये सारे मलाल...
रोया हूँ फिर आज सुबक के, हरियर चुनरी हुई है लाल...

24 अप्रेल 2017 को सुकमा में वीरगति प्राप्त..... माँ भारती के सपूतों की शहादत को नमन...
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि,..

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
*9424142450#

Friday, 21 April 2017

क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ...

क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ...
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क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
मेरा रोम रोम, है तेरी धरा,
एक फूल मैं, तुझे चमन कहूँ...
क्या मन कहूँ.....

तेरे बाज़ुओं में, वो जान है,
थामे तिरंगा, महान है...
कई रंग है, जाति धर्म के...
तुझे सरिता माँ, सनातन कहूँ...
क्या तन कहूँ....

तेरी गोद में, केसर खिले,
पाँवों तले, सागर मिले...
तेरी बाहों की, क्या विशालता,
कभी भुज कहूँ, कभी असम कहूँ...
क्या तन कहूँ...

कई बोलियाँ, कई लेखनी,
त्यौहारों की है, नव रागिनी...
खुशबू लिए, हरीभरी वादियाँ,
सुर सागर है माँ, तुझे नमन कहूँ...

क्या तन कहूँ, क्या मन कहूँ,
सर्वस्व तेरा,
वतन कहूँ...

....©रवीन्द्र💐💐
*9424142450#

Saturday, 15 April 2017

सबब हम ने जाना इस बात का...


सबब हम ने जाना इस बात का...
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सबब हम ने जाना इस बात का,

बे ताअल्लुक़ सी मुलाक़ात का...

दबाया हथेली तो शरमा गये,

हसीं वाकया ये जुमेरात का...

गली का किनारा ना भूला गया,

कभी था गवाही मेरी बात का...

हिना रँग लाती कहाँ आज़कल,

आँखों मे मौसम है बरसात का...

ख़्वाबों में ही, पर मिलो तो सही,

क़दर लाज़मी है जज़्बात का...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐



खुशियों की फ़ितरत परछाईयाँ सी,
नज़र में है लेकिन, हासिल नहीं...
ख़्वाबों की भीड़ में, घुटन ये कैसी,
क्या नींद मेरी इस क़ाबिल नहीं..?



....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

Friday, 14 April 2017

शबनमी सुरमई रात ढलने लगी...




शबनमी सुरमई रात ढलने लगी...
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शबनमी सुरमई रात ढलने लगी,


उम्मीदों का सूरज जवां हो गया...



शिकारा सतह पे मचलने लगा,


छूते ही लहर इक फ़ना हो गया...



ज़ुल्फ़ है या घटाओं की जादूगरी,


बिखरते ही दिलकश मां हो गया...



छुपाओ ना अब चाँद को हाथ में,


रुख़ ए दीदार को शब धुँआ हो गया...



उनकी गली का कोई दे पता,


इश्क़ में 'रवीन्द्र' बदगुमां हो गया...


....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

*9424142450#...

Wednesday, 12 April 2017

वो हसीं वादियाँ.....

वो हसीं वादियाँ, हम मिले थे जहाँ...
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वो हसीं वादियाँ, हम मिले थे जहाँ,
बात करने लगे, वो क़दमों के निशां...

कभी गीत सुरमई, फिज़ाओं में थी,
गुनगुनाता है आज, ये सारा जहां...

क्यूँ खोलूँ मैं आँखें, बंद ही रहने दूँ,
ना टूटे तेरे, ख़्वाबों का कारवां...

जान ये जायेगी, ग़र जुदा मैं हुआ,
इसी सोच में, हो गया मैं धुँआ...

बाद मुद्दत 'रवीन्द्र', आज हैं हम मिले,
ख़्वाब रंगीं हुए, और महफ़िल जवां...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
@9424142450#...

Tuesday, 11 April 2017

दिन ने मुठ्ठी खोल दिये.....


दिन ने मुठ्ठी खोल दिये, धूप मचल कर बिखर गयी...
अँधेरों से परेशां ये जमीं, खुश होकर जैसे निख़र गयी...
आबोहवा अलसाई सी, बादल की शरारत हो जैसे...
दौड़ लगाती समय सुई, पल में कितनी सँवर गयी..

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

Friday, 7 April 2017

हे अर्जुन! अभी अधीर न हो...















हे अर्जुन! अभी अधीर न हो,
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हे अर्जुन! अभी अधीर न हो,
ये पाञ्चजन्य की पुकार नहीं...

नियम उपनियम संयमित हैं,
कुरुक्षेत्र की ये ललकार नहीं...

शोणित की प्यासी है ये धरा,
कोई मुदित पुष्प उपहार नहीं...

आशान्वित हैं अभी कई कुटुम्ब,
किया जिसने छल व्यापार नहीं...

हे केशव! तुम ही न्याय करो,
कोई दूजा पालनहार नहीं...

💐💐💐रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
@9424142450#

अब ना गाड़ी बुलाती है....

















अब ना गाड़ी बुलाती है, और ना सीटी बजाती है...
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अब ना गाड़ी बुलाती है, और ना सीटी बजाती है...

               अपनी तो जिन्दगी बस, यूँ ही बीती जाती है...

अब ना डिब्बों का मेल है, ना छुक छुक का खेल है...

               गुजर गये जो प्यारे लम्हें, उन लम्हों की याद आती है...

अब ना सीने में आग है, ना कोई सुरीला राग है...

               ठहर गया साहिल जैसा, बस लहरें आती जाती है...

अब ना गाड़ी बुलाती है, और ना सीटी बजाती है...

               अब तो जिन्दगी 'रवीन्द्र', बस यूँ ही बीती जाती है...


                      ....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
                          @9424142450#

Wednesday, 5 April 2017

जी करता है पन्ने पलट लूँ...



जी करता है पन्ने पलट लूँ...
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जी करता है पन्ने पलट लूँ, यादों की किताब के...
शायद ख़ुशबू बची हुई हो, उनके दिये ग़ुलाब के...

दौर पुराना बीत गया क्यों, वक़्त ये ज़ालिम जीत गया क्यों..?
गहरी नींद मैं सोना चाहूँ, सिलसिले हों उनके ख़्वाब के...

मन में कसक बड़ी रहती थी, शायद वो भी कुछ कहती थी..!
अब आया है समझ में यारो, मतलब उनके जवाब के...

बेफिक्री का आलम था वो, गुल खिलने का मौसम था वो...
नाज और नखरे लगते प्यारे, जो भी हुए ज़नाब के...

काश वो दौर पलट आ जाये, मन को छेड़े तन बहकाये...
लुटी रियासत फिर मिल जाये, हम बिगड़े हुए नवाब के...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

कभी ऐसा भी हो मंज़र...



कभी ऐसा भी हो मंज़र,
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कभी ऐसा भी हो मंज़र,

हँसी चेहरा तेरा देखूँ...
बड़े तनहा से लगते है,
नज़ारे बिन तेरे हमदम...

कभी ख़्वाबों में तुम आओ,

ये आँखें हों उनींदी सी...
मेरी हर सांस हो महकी,
तुम्हारे प्यार का मौसम...

गली वो याद करती है,

जहाँ पायल की छनछन थी...
तरसते हैं नज़ारे भी,
हुआ बरसात का मौसम...

हवा ख़ामोश हो जाये,

कोयल गीत क्यूँ गाये?
जब तुम गुनगुनाती हो,
आये प्यार का मौसम...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

साँझ घिर आने से पहले...


साँझ घिर आने से पहले,
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साँझ घिर आने से पहले,
घर को लौट आना प्रिये...
रात की खामोशियाँ भी,
बिन तेरे तनहा सी है...

है अगर शिक़वा गिला तो,
खुल के तुम बतला भी दो...
मेरी ये छोटी सी दुनिया,
बिन तेरे तनहा सी है...

कुछ लकीरों से बनी,
क़िस्मत की ये बाज़ीगरी...
कैद मुट्ठी में है कब से,
बिन तेरे तनहा सी है...

महफ़िलों से जब कभी,
दिल ये भर जाये 'रवीन्द्र'...
गीत मेरे गुनगुनाना,
बिन तेरे तनहा सी है...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

मेरा मन बावला सा....



मेरा मन बावला सा, फिरता यहाँ वहाँ...
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मेरा मन बावला सा, फिरता यहाँ वहाँ,
है कौन सी वो महफ़िल, पाऊँ सुकूं जहाँ..?
बहल ही जाता है मन, रिश्तों की ऐसी डोर...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गई है माँ..?

सब कुछ हुआ है हासिल, तू भी गगन से देख़...
आबाद तेरा आँगन, बच्चों के काज नेक...
हर ओर प्रेम महके, है खुशियों का कारवां...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

तेरे हाथों से सँवर के, बिटिया दुल्हन बनी...
बेटों को ऊँगली देकर, कितना किया धनी...
रिश्ते निभाये कितने, जैसे फैला ये आसमाँ...
ये नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

मज़बूत बाजुओं से, सींचा है ये गुलशन...
अक्सर मैं देखता हूँ, उनका उदास मन...
मुस्कान ही हैं बाकी, खोया है कहकशाँ...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ...

किस्से कहानियाँ से, अब रखता हूँ सरोकार...
हर पल तड़प रहा हूँ, फिर पाने को तेरा प्यार... 
ख़्वाबों में ही यकीं है, हक़ीक़त हुआ धुआँ...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

उलझन भरी है दुनिया, और बेरंग सा जहां...
ये नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?
कहाँ खो गयी है माँ, कोई लौटा दे मेरी माँ...
ये बेटा पुकारता है, बस लौटा दे मेरी माँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

Tuesday, 4 April 2017

कितने कसक हैं दिल में.....




कितने कशक हैं दिल में, यूँ ही पल रहे...
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कितने कशक है दिल में, यूँ ही पल रहे,
कोई छेड़ दे इन्हें फिर, द्वन्द क्यूँ न हो..?

मेरी बंद मुठ्ठियों में हैं, अक्षर भरे हुए,
मुठ्ठी खोल दूँ जो, फिर छंद क्यूँ न हो..?

सूरज की ओज पाकर, ओस गुम हुआ,
भौरों की चाह में फिर, मकरंद क्यूँ न हो..?

प्रियतम की राह देखें, धड़कन को थामकर,
मधुमास में समय गति, फिर मंद क्यूँ न हो..?

.....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

Monday, 3 April 2017

सरहदों के पार...


                      फिलिपीन्स में भुखमरी की भयावहता को प्रदर्शित करती छायाचित्र.... 

..........से प्रेरित पंक्तियाँ....






सरहदों के पार भी....
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सरहदों के पार भी, होता है सुन्दर सा जहान...
ख़ुशनुमा बहती हवा, और गीत गाता आसमान...

हाथ छोटे हैं मग़र, हमें चाँद तारों की ललक...
खोल दो ये बंदिशें, फिर देख लो मन की उड़ान...

रंग खूं सब लाल है, इस पार भी उस पार भी...
फिर सबक़ लेते नहीं, क्यों हैं हमारे हुक्मरान..?

बाद इन सांसो के मिट्टी, पाक भी नापाक भी...
फिर ग़ुरूर किस बात पे?,शेख़ सूफ़ी राज़दान...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

Sunday, 2 April 2017

दो घड़ी का साथ माँगा....



दो घड़ी का साथ माँगा, 
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दो घड़ी का साथ माँगा, तो बुरा क्या हो गया..?
हमने उनका हाथ माँगा, तो बुरा क्या हो गया..?

हम न सोचे थे कभी, दिल का लगाना खेल है..?
स्वर्ग से रिश्ते बने है, क्या ग़ज़ब का मेल है..!
महकते जज़्बात माँगा, तो बुरा क्या हो गया..?
दो घड़ी का साथ माँगा....

और क्या कुछ चाहिये, हमसफ़र वो साथ हो...
साँझ-सुबह रात-दिन, हाथों में उनका हाथ हो...
शबनमी बरसात माँगा, तो बुरा क्या हो गया..?
दो घड़ी का साथ माँगा...

रात हो उजली किरण सी, भोर हो सिन्दूर सा...
दूर तक रौशन जहां हो, प्रेम रस में चूर सा...
मरमरी हालात माँगा, तो बुरा क्या हो गया..?
दो घड़ी का साथ माँगा...


...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

ढूंढ रहा मन फिर वो आँगन...



ढूंढ रहा मन फिर वह आँगन,
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ढूंढ रहा मन फिर वह आँगन, कोई तो बतलाये ना...
फुदक रही गौरैया जिसमें, ऐसा नज़र क्यों आये ना...

साँझ घनेरी घिर जाये जब, तुलसी का बिरवा महके...
धुआँ उठे फिर छप्पर से, कोई ऐसी दुनिया लाये ना...

महक उठे सब बाग़ बगीचे, हरियर चुनरी लहराये...
ताल तलैया मचल उठे, क्यूँ ऐसी बरखा आये ना...

दादा के जूतों में भरकर, दोनों पैर है थिरक रहे...
हो नींद वही बचपन वाली, कोई ऐसी लोरी गाये ना...

आँगन है पर सूना -सूना, चिकनी सारी दीवार हुई...
फुदक फुदक कर दाना चुगने, गौरेया फिर आये ना...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
विश्व गौरैया दिवस पर समर्पित पंक्तियाँ....💐💐🙏🏽

Saturday, 1 April 2017

चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...


चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...
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बिन तेरे गुज़रती है, हर रात कैसे...
बताऊँ सजन मैं, हर एक बात कैसे...?
जो सुनना है ये सब, मेरे दिल की बातें...
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...

ना मारूँगी ताने, ना रूठूँगी तुमसे...
ये कहती हुँ तुमको, तुम्हारी कसम से...
हर एक पल है बोझिल, न काटे कटे हैं...
तड़पते बिरहन की, कोई रात जैसे...
चले आओ.....

परदेश में तुम, आँगन मेरा सूना...
भला कैसे बीते, ये सावन महीना...
हैं श्रृंगार फ़ीके, ना भाये आईना...
तड़पती मैं हर पल, अमलतास जैसे...
चले आओ....

खिले हैं कई फ़ूल, मन को ना भाये...
मुस्काती भी हूँ, मैं आंसू छिपाये...
भला और कब तक, मैं प्यासी रहुँगी..?
बरसोगे कब रिमझिम, बरसात जैसे...
चले आओ...

रिश्तों की कितनी, सुनहरी सी बेड़ी...
मेंहदी है फ़ीका, है खामोश चूड़ी...
पायल और बिछिया, चुभते हैं हर पल...
ये पीहर भी लागे है, वनवास जैसे...
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...

बिन तेरे गुज़रती हैं, हर रात कैसे..?
बताऊँ सजन मैं, हर एक बात कैसे..?
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

मरमरी अहसास सा बंधन अनोखा हो गया...




मरमरी अहसास सा, बंधन अनोखा हो गया...
झील सी आँखों में उसके, उम्र भर को खो गया...
सुरमयी संगीत जैसे, घुल रहा हो फिज़ाओ में...
उसकी बातें वो ही जाने, मैं उसी का हो गया...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

बड़ी रंगीनियाँ हो फ़िर...



बड़ी रंगीनियाँ हो फ़िर...
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बड़ी रंगीनियाँ हो फिर, बड़े मोहक नज़ारे हों...
ज़ुबां ख़ामोश रह जायें, निगाहों से ईशारे हों...

तुम्हारी ज़ुल्फ़ ग़र उलझे, धड़कनें तेज ये होंगी...
मिले राहत मेरे दिल को, हवाओं के शरारे हों...

तेरी चूड़ी, तेरे कंगन, कभी बिंदिया करे साज़िश...
चलो मंजूर होगा ये, जो हम दरिया किनारे हों...

चला जाता हूँ राहों में, मंज़िल की चाहत में...
क़दम ये लौट भी आयें, अग़र तुमने पुकारे हों...

ख़्वाहिश मेरी ये 'रवीन्द्र', यही अरमान रखता हूँ...
तुम्हारा साथ हो ऐसे, गगन में जो सितारे हों...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

मैं बादल खींच के दिन ढँक दूँ...


मैं बादल खींच के दिन ढँक दूँ,
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मैं बादल खींच के दिन ढँक दूँ,
सहला कर चाँद जवान करूँ...

उनके आँचल की बात लिखूँ,
इस धरती को आसमान करूँ...

जुगनूं संग खेलूँ लुका छिपी,
अंधियारे को रौशनदान करूँ...

मैं सींचू सदा उम्मीद ए दरख़्त,
क्यूँ ख़्वाब कोई सुनसान करूँ...

लो सुबक रही ये स्याह रात,
इसे तारों का गुलदान करूँ...

मैं लिखूँ अमन और खुशहाली,
जग में फिर नया बिहान करूँ...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐


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पल दो पल के साथ का.....



पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा...
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पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा...
होठ कुछ ना कह सके, दिल धड़कता ही रहा...

शोख उसकी हर अदा, झील में जैसे कंवल...
बन लहर मैं हर घड़ी, उसको तकता ही रहा...

आईना हैरान है वो, सुर्ख़ शबनम देखकर...
बन लटें हसरत मेरी, वो गाल छूता ही रहा...

मिल सकूँ किसी मोड़ में, इल्तज़ा इतनी सी है...
तुम हो गुजरे साल सा, और मैं ठहरा ही रहा...

एक पल की दूरी अब, न गवारा मुझको है 'रवीन्द्र'...
अश्क़ उनकी याद में, हर वक़्त बहता ही रहा...

...रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

ओ सुबह की लालिमा...


 ओ सुबह की लालिमा...
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ओ सुबह की लालिमा, जीवन सबका संवार दे...
ऐ चमकते धूप तू, सर्वत्र जीवन प्रसार दे...

साँझ की सुन रौशनी, ख़ुशनुमा कर ज़िन्दगी...
रात की शीतल हवा, जहां में सबको प्यार दे...

सुन गगन फैला हुआ, सबको दे सद्भावना...
मोहक महकती ऐ धरा, ख़ुशनुमा से विचार दे...

दूर तक जाती दिशाएँ, हर शख़्स को दे हौसला...
स्याह काली रात सुन, तू सुकून दे और करार दे...

बहती नदी आबाद रह, दे आगे बढ़ने की ललक...
बरखा तू दे नई ज़िन्दगी, नित प्रेम की फ़ुहार दे...

ठहरे हुए ऐ ताल सुन, तू पीर लेकर धीर दे...
पर्वत तू ऊँचा मान रख, नव सोच दे विस्तार दे...

और क्या माँगू 'रवीन्द्र', सब खुश रहें आबाद हों...
हे मोहना तू प्रेम दे, ब्रज सा सरल संसार दे...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

किसी रोज खुला हो आसमां...



किसी रोज खुला हो आसमां...
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किसी रोज खुला हो आसमां, बाहें फैलाये सारा जहां...
मुमकिन है उस दिन सूरज की, बादल से यारी हो जाए...

धरती पर हरियाली चादर, हर डाल लदी हो जामुन से...
अमन की खुश्बू हवा में हो, हर दिशाएँ न्यारी हो जाए...

महकेगी जब सौंधी मिट्टी, हर बूँद पसीना हो मोती...
राखी बाँधे जब हर बहना, ये जग फुलवारी हो जाए...

हर गाँव बने जब वृन्दावन, चोरी भी हो तो बस माखन...
बन जाऊँ 'रवीन्द्र' सुदामा मैं, हर मित्र मुरारी हो जाए...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

एक सुखद अहसास है.....


एक सुखद अहसास है, यूँ सा तेरा होना...
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एक सुखद अहसास है, यूँ साथ तेरा होना...
जीवन का आभास है, यूँ साथ तेरा होना...

दौड़ लगाते वक्त से, कुछ लम्हें चुरा लाऊँ...
सब कुछ जैसे पास है, यूँ साथ तेरा होना...

भीड़ भरी दुनिया है बहुत, परछाई सा प्यार...
अपनेपन का अहसास है, यूँ साथ तेरा होना...

सुन्दर फूलों की खुशबू से, महका घर आँगन...
मेरे अंतर का विश्वास है, यूँ साथ तेरा होना...

चाँद सितारे क्या माँगू, ओ मतवाले आकाश...
मेरी दुनिया मेरे पास है, यूँ साथ तेरा होना...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...