Wednesday, 5 April 2017

कभी ऐसा भी हो मंज़र...



कभी ऐसा भी हो मंज़र,
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कभी ऐसा भी हो मंज़र,

हँसी चेहरा तेरा देखूँ...
बड़े तनहा से लगते है,
नज़ारे बिन तेरे हमदम...

कभी ख़्वाबों में तुम आओ,

ये आँखें हों उनींदी सी...
मेरी हर सांस हो महकी,
तुम्हारे प्यार का मौसम...

गली वो याद करती है,

जहाँ पायल की छनछन थी...
तरसते हैं नज़ारे भी,
हुआ बरसात का मौसम...

हवा ख़ामोश हो जाये,

कोयल गीत क्यूँ गाये?
जब तुम गुनगुनाती हो,
आये प्यार का मौसम...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

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