Saturday 23 November 2019

सूना है तुम बिन, ये सारा जहां...



किसको सुनाऊँ, अज़ब दास्तां,
सूना है तुम बिन, ये सारा जहां।

रुँधा गला है, और आँखें हैं नम,
मुस्कुराने की मैंने, ली है कसम,
समय चल रहा है, हवा बह रही,
ठहर सा गया हूँ, एक मैं ही माँ।
सूना है तुम बिन...

कसक हैं कई पर सुनाऊँ किसे,
ये पाँवों के छाले दिखाऊँ किसे,
बिखर जो गया, समेटेगा  कौन,
नहीं हाथ तुझसा, कोई और माँ।
सूना है तुम बिन...

हुई गलतियाँ भी, कई बार तब,
पर आज जाना है इनका सबब,
सिखाया है तूने बहुत कुछ मुझे,
नहीं भूला मैं भी सबक कोई माँ।
सूना है तुम बिन...

किसको सुनाऊँ,  अज़ब दास्तां,
सूना है तुम बिन, ये सारा जहां।


...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
    #9424142450#

दसवीं पुण्यतिथि पर स्मृतिशेष ममतामयी माँ के श्री चरणों में सादर समर्पित...

Friday 19 April 2019

मुख़्तसर सा आदमी....

बेवजह से हो गए हैं ताल्लुक़ात, कुछ इन दिनों।
आ तलाशें ख़ुद के भीतर, मुख़्तसर सा आदमी।।

बंद कर  आँखें चला  सरपट, समय के चाल सा।
अपने ही उलझन में गिरता, उठ रहा है आदमी।।

खोल कर  गिरहें सभी, चुपचाप है वो आजकल।
ख़ुद से ही अब  ख़ूब  बातें, कर रहा  है आदमी।।

हो सके तो  कैद कर लो,  ख़्वाब सारे  आँखों में।
देख कर औरों की बरकत, जल रहा है आदमी।।

फ़िक्र तेरी, जिक्र तेरा, था कहाँ अब तक रवीन्द्र।
देख ले मौसम की तरह, बदल रहा है आदमी।।

...©रवीन्द्र पाण्डेय

Wednesday 20 March 2019

मस्तानों की टोलियाँ, फ़ाग में हुए मलंग...




लाल, हरा, नीला, पीला, निखर रहे हैं रंग।
मस्तानों की टोलियाँ,  फ़ाग में हुए मलंग।।

भर पिचकारी घूम रहे,  बच्चे  चारों ओर।
अनायास  बौछार  से,  राहगीर  सब दंग।।

स्वप्नपरी के रूप में,  झूमें  हैं  चाचा आज।
चाची गुझिया खिला रही, दही बड़े के संग।

छुईमुई सी भाभियाँ, खिलकर हुई गुलनार।
बाँट रहे भैया  देखो,  दूध  मिलाकर भंग।।

चुनर संभाले छोरियाँ, लिए मोहक मुस्कान।
छोरे  सब  मंडरा  रहे,  जैसे हों कटी पतंग।।

दादा हमको ताक रहे, मुठ्ठी भर लिए गुलाल।
दादी  सबको  कह रही,  ख़ूब  करो हुड़दंग।।

आया है त्यौहार 'रवीन्द्र', लेकर यही संदेश।
गले मिलो हँस कर सभी,  भूलो भेद के रंग।।


...©रवीन्द्र पाण्डेय

Thursday 14 February 2019

प्रेम में घायल हुआ जो, प्रेम फिर बुनता है क्यूँ...



बैठ कर कुछ पल मैं सोचूं, 
वक़्त क्यूँ रुकता नहीं...
है अगर धरती से यारी,
क्यूँ गगन झुकता नहीं...

काश के ऐसा कभी हो,

देर तक खुशियाँ मिले...
ख़्वाबों की मज़बूत टहनी,
में नया कोई ग़ुल खिले...
ख़्वाबों की लम्बी डगर है,
सिलसिला रुकता नहीं...
है अगर धरती से यारी,
क्यूँ गगन झुकता नहीं...

क्यूँ चले नित चाँद तारे,

घूमती धरती है क्यूँ...
तुंग पर्वत शान से है,
धीर सा सागर है क्यूँ...
क्यूँ फ़लक है स्याह होता,
सब धवल रहता नहीं...
है अगर धरती से यारी,
क्यूँ गगन झुकता नहीं...

चटकती कलियों की आहट,

भौंरे ही सुनते है क्यूँ..?
प्रेम में घायल हुआ जो,
प्रेम फिर बुनता है क्यूँ...
मन में क्यूँ है पीर भरता,
नीर क्यूँ बहता नहीं...
है अगर धरती से यारी,
क्यूँ गगन झुकता नहीं...

कोई तो ऐसा भी कर दे,

समय पग उल्टा भी धर दे...
दे मुझे बचपन सुहाना,
माँ की लोरी का ज़माना...
ऐ किशन तू तो है सक्षम,
क्यूँ भला करता नहीं...
है अगर धरती से यारी,
क्यूँ गगन झुकता नहीं...

है अगर धरती से यारी,

क्यूँ गगन झुकता नहीं...
बैठ कर कुछ पल मैं सोचूं,
वक़्त क्यूँ रुकता नहीं...


...©रवीन्द्र पाण्डेय 🌹🌹

लाने दो काट दस सिर, रह जाये ना मलाल...


ख़ातिर वतन के देखो, क़ुरबां हुए हैं लाल,
फड़क उठी भुजाएँ, अब ठोकने को ताल।

इतना ही रहम कर दो, सुनो मेरे हुक्मरान,
लाने दो काट कर सिर, रह जाये ना मलाल।

सिंदूर मिट गए कई, घर-आँगन उजड़ गए,
कैसी चली समय ने, ये साजिशों की चाल।

ख़ामोशी छा गयी है,  सरहद  के  पार भी,
दहशत में जी रहे खुद, आतंक के दलाल।

फटने को हुआ आतुर,  ये मेरा रोम-रोम,
मत रोको; आने भी दो, अब खून में उबाल।

वार्ताएँ बहुत कर लीं,  लेकर के  शांति दीप,
यलगार करो अब तो, लेकर 'रवीन्द्र' मशाल।


14 फरवरी 2019 को पुलवामा (जम्मू एवं काश्मीर) में वीर गति को प्राप्त, माँ भारती के अमर सपूतों को कृतज्ञ राष्ट्र नमन करता है....💐💐💐

...©रवीन्द्र पाण्डेय 🌹🌹
#9424142450#


पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...