किसको सुनाऊँ, अज़ब दास्तां,
सूना है तुम बिन, ये सारा जहां।
रुँधा गला है, और आँखें हैं नम,
मुस्कुराने की मैंने, ली है कसम,
समय चल रहा है, हवा बह रही,
ठहर सा गया हूँ, एक मैं ही माँ।
सूना है तुम बिन...
कसक हैं कई पर सुनाऊँ किसे,
ये पाँवों के छाले दिखाऊँ किसे,
बिखर जो गया, समेटेगा कौन,
नहीं हाथ तुझसा, कोई और माँ।
सूना है तुम बिन...
हुई गलतियाँ भी, कई बार तब,
पर आज जाना है इनका सबब,
सिखाया है तूने बहुत कुछ मुझे,
नहीं भूला मैं भी सबक कोई माँ।
सूना है तुम बिन...
किसको सुनाऊँ, अज़ब दास्तां,
सूना है तुम बिन, ये सारा जहां।
...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
#9424142450#
दसवीं पुण्यतिथि पर स्मृतिशेष ममतामयी माँ के श्री चरणों में सादर समर्पित...