लाल, हरा, नीला, पीला, निखर रहे हैं रंग।
मस्तानों की टोलियाँ, फ़ाग में हुए मलंग।।
भर पिचकारी घूम रहे, बच्चे चारों ओर।
अनायास बौछार से, राहगीर सब दंग।।
स्वप्नपरी के रूप में, झूमें हैं चाचा आज।
चाची गुझिया खिला रही, दही बड़े के संग।
छुईमुई सी भाभियाँ, खिलकर हुई गुलनार।
बाँट रहे भैया देखो, दूध मिलाकर भंग।।
चुनर संभाले छोरियाँ, लिए मोहक मुस्कान।
छोरे सब मंडरा रहे, जैसे हों कटी पतंग।।
दादा हमको ताक रहे, मुठ्ठी भर लिए गुलाल।
दादी सबको कह रही, ख़ूब करो हुड़दंग।।
आया है त्यौहार 'रवीन्द्र', लेकर यही संदेश।
गले मिलो हँस कर सभी, भूलो भेद के रंग।।
...©रवीन्द्र पाण्डेय
मस्तानों की टोलियाँ, फ़ाग में हुए मलंग।।
भर पिचकारी घूम रहे, बच्चे चारों ओर।
अनायास बौछार से, राहगीर सब दंग।।
स्वप्नपरी के रूप में, झूमें हैं चाचा आज।
चाची गुझिया खिला रही, दही बड़े के संग।
छुईमुई सी भाभियाँ, खिलकर हुई गुलनार।
बाँट रहे भैया देखो, दूध मिलाकर भंग।।
चुनर संभाले छोरियाँ, लिए मोहक मुस्कान।
छोरे सब मंडरा रहे, जैसे हों कटी पतंग।।
दादा हमको ताक रहे, मुठ्ठी भर लिए गुलाल।
दादी सबको कह रही, ख़ूब करो हुड़दंग।।
आया है त्यौहार 'रवीन्द्र', लेकर यही संदेश।
गले मिलो हँस कर सभी, भूलो भेद के रंग।।
...©रवीन्द्र पाण्डेय
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