बेचैन मन फिर ढूंढे वो आँचल,
बन कर हवा उड़ चली हो कहाँ...
यूँ तो खिले चाँद तारे हैं बेशक,
लगे स्याह फिर क्यों हमें आसमां...
ये धरती, अम्बर, नज़ारे वही हैं,
लगे फिर क्यों सूना ये सारा जहां...
चलना सिखाया हमें थाम उँगली,
कोई देख ले बन गया कारवां...
हासिल है दुनिया सबकी नज़र में,
वक़्त भी जालिम हुआ मेहरबां...
कहने को बहुत कुछ है दिल में,
बातें किसे सब करें हम बयां...
रिश्ते हुए कई बेज़ार तुम बिन,
आ कर सँवारो इन्हें मेरी माँ...
...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
24 नवम्बर... नवम पुण्यतिथि पर ममतामयी माँ को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि...