पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा...
------------------------***--------------------
पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा...
होठ कुछ ना कह सके, दिल धड़कता ही रहा...
शोख उसकी हर अदा, झील में जैसे कंवल...
बन लहर मैं हर घड़ी, उसको तकता ही रहा...
आईना हैरान है वो, सुर्ख़ शबनम देखकर...
बन लटें हसरत मेरी, वो गाल छूता ही रहा...
मिल सकूँ किसी मोड़ में, इल्तज़ा इतनी सी है...
तुम हो गुजरे साल सा, और मैं ठहरा ही रहा...
एक पल की दूरी अब, न गवारा मुझको है 'रवीन्द्र'...
अश्क़ उनकी याद में, हर वक़्त बहता ही रहा...
...रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
Waah dil ki gahraiyon se...
ReplyDeleteशुक्रिया प्रिय वैभव जी...
DeleteSir , excellent
ReplyDeletethanks a lot... Dear Abhishek...
Delete