जी करता है पन्ने पलट लूँ...
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जी करता है पन्ने पलट लूँ, यादों की किताब के...
शायद ख़ुशबू बची हुई हो, उनके दिये ग़ुलाब के...
दौर पुराना बीत गया क्यों, वक़्त ये ज़ालिम जीत गया क्यों..?
गहरी नींद मैं सोना चाहूँ, सिलसिले हों उनके ख़्वाब के...
मन में कसक बड़ी रहती थी, शायद वो भी कुछ कहती थी..!
अब आया है समझ में यारो, मतलब उनके जवाब के...
बेफिक्री का आलम था वो, गुल खिलने का मौसम था वो...
नाज और नखरे लगते प्यारे, जो भी हुए ज़नाब के...
काश वो दौर पलट आ जाये, मन को छेड़े तन बहकाये...
लुटी रियासत फिर मिल जाये, हम बिगड़े हुए नवाब के...
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
Missing some one...
ReplyDeleteno not any specific...
Deletedear..