चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...
--------------------***--------------------
बिन तेरे गुज़रती है, हर रात कैसे...
बताऊँ सजन मैं, हर एक बात कैसे...?
जो सुनना है ये सब, मेरे दिल की बातें...
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...
ना मारूँगी ताने, ना रूठूँगी तुमसे...
ये कहती हुँ तुमको, तुम्हारी कसम से...
हर एक पल है बोझिल, न काटे कटे हैं...
तड़पते बिरहन की, कोई रात जैसे...
चले आओ.....
परदेश में तुम, आँगन मेरा सूना...
भला कैसे बीते, ये सावन महीना...
हैं श्रृंगार फ़ीके, ना भाये आईना...
तड़पती मैं हर पल, अमलतास जैसे...
चले आओ....
खिले हैं कई फ़ूल, मन को ना भाये...
मुस्काती भी हूँ, मैं आंसू छिपाये...
भला और कब तक, मैं प्यासी रहुँगी..?
बरसोगे कब रिमझिम, बरसात जैसे...
चले आओ...
रिश्तों की कितनी, सुनहरी सी बेड़ी...
मेंहदी है फ़ीका, है खामोश चूड़ी...
पायल और बिछिया, चुभते हैं हर पल...
ये पीहर भी लागे है, वनवास जैसे...
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...
बिन तेरे गुज़रती हैं, हर रात कैसे..?
बताऊँ सजन मैं, हर एक बात कैसे..?
चले आओ अब तुम, मधुर ख़्वाब जैसे...
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
सचमुच मधुर ख़्वाब सा.....
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ......
शुक्रिया मुग्धा ...
ReplyDelete