हे अर्जुन! अभी अधीर न हो,
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हे अर्जुन! अभी अधीर न हो,
ये पाञ्चजन्य की पुकार नहीं...
नियम उपनियम संयमित हैं,
कुरुक्षेत्र की ये ललकार नहीं...
शोणित की प्यासी है ये धरा,
कोई मुदित पुष्प उपहार नहीं...
आशान्वित हैं अभी कई कुटुम्ब,
किया जिसने छल व्यापार नहीं...
हे केशव! तुम ही न्याय करो,
कोई दूजा पालनहार नहीं...
💐💐💐रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
@9424142450#
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