सुहानी सुबह मुस्कुराने लगी।
हवाएँ मिलन गीत गाने लगीं।।
बारिश की बूंदों ने छुआ बदन।
उम्मीदें रंगोली सजाने लगीं।।
सूरज मनाने गया छुट्टियाँ।
बदली भी पायल छनकाने लगी।।
नदिया जो गुमसुम, मायूस थी।
फिर हो कर जवां इतराने लगी।।
ज़मीं पर बने कदमों के निशां।
राहें फिर मेंहदी रचाने लगीं।।
किसी बात पर, जैसे रूठे पिया।
धरा सज संवर के रिझाने लगी।।
बदलना ही है, हर एक दौर को,
सबक ज़िन्दगी ये सिखाने लगीं।।
www.kaviravindra.com
Pic. courtesy google...