Saturday, 18 April 2020

अश्रु सब अँगार कर लो...

भूल कर भय, तुम लहर की, भुजाएं पतवार कर लो।
आगे बढ़ कर युद्ध लड़ लो, अश्रु सब अँगार कर लो।

वीर तो केवल वही है, जिसे रण का भय न किंचित।
उठो अब गांडीव लेकर,  प्रतिध्वनित  हुंकार भर लो।

भावना, संवेदना, करुणा,  सकल  श्रृंगार  समुचित।
युद्धभूमि का मान समझो, नख यथा तलवार कर लो।

रक्तरंजित पथ मिले या, दिग्भ्रमित साहस कदाचित।
साध कर  हर  पग धरो, दुर्भाग्य के  मनुहार  कर लो।

सकल जग यह मात्र भ्रम है, सब दिशाएँ आनी जानी।
प्रतिस्थापित मूल्य कर, निज धरा पर उपकार कर लो।

भूल कर भय, तुम लहर की, भुजाएँ पतवार कर लो।
आगे बढ़ कर युद्ध लड़ लो, अश्रु सब अँगार कर लो।

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
छायाचित्र गूगल से साभार...

Sunday, 5 April 2020

यह अंधेरा छट जायेगा...

रात्रि का अंतिम प्रहर है, 
दिन नया फिर आयेगा।
दीप  जल  उठे   हजारों,
यह अंधेरा छट जायेगा।

रख  भरोसा  राम  पर,
वो सबके पालनहार हैं।
लहरें  हैं अनगिनत पर,
विजयी सदा पतवार है।
आसुरी विपदा अगम है,
पार  वो  ही  लगायेगा।

कुपित  हैं  सद्भावनाएँ,
क्लेश है, नित द्वेष  है।
रक्तरंजित हो रहा जग,
यह समर अभी शेष है।
वरण  कर  सन्मार्ग का,
शांति ध्वज लहरायेगा।

देव, दानव, नाग, किन्नर,
संशय घड़ी जाने हैं  इंद्र।
प्रस्फुटित   ज्वालामुखी,
भयभीत ना होना रवींद्र।
बीत जायेगा यह पतझड़,
ऋतु बसंत फिर आयेगा।

रात्रि का अंतिम प्रहर है,
दिन नया फिर आयेगा।
दीप  जल  उठे  हजारों,
यह अंधेरा छट जायेगा।


...©रवीन्द्र पाण्डेय ...
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पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...