Sunday, 4 July 2021

आओ कि हम तुम, ये रस्में निभाएं...


 जरूरी है रस्मों का निभना-निभाना,

अपनों से मिलना, सुनना-सुनाना।


अगर ये ना हो, ज़िन्दगी है अधूरी,

ना वादे मुकम्मल, ना अहसास पूरी।। 


आओ कि हम तुम, ये रस्में निभाएं,

सुनें बात दिल की, दिल की सुनाएं।


जब कुछ कहूँ, तुम मेरी मान लेना,

जो कुछ कह न पाऊं, उसे जान लेना।।


ये जिंदगानी हंसीं इक सफ़र है,

जो हों साथ अपने, सुहानी डगर है।


मेरी बात कोई, जो चुभ जाए तुमको,

बता देना मुझको, न आंसू बहाना।।


तुम्हें हक है, मुझसे कहो बात सारी,

सुनूंगा मैं दिल से, सब बातें तुम्हारी।


तुम्हीं मेरी दुनियां, तुम्हीं तो जहां हो,

मेरी चाहतों का खुला आसमां हो।।


करो इतना वादा, न रूठोगे हम से,

कहते हैं मर जायेंगे हम कसम से।


हकीक़त है ये, ना समझो अफ़साना,

हो जाने जिगर, तुम्हीं जाने जाना।।


जरूरी है रस्मों का निभना-निभाना,

अपनो से मिलना, सुनना-सुनाना...

www.kaviravindra.com

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