Sunday, 25 November 2018

थक गये पँख, उड़ते हुए ख़्वाब के....



ज़िन्दगी के सुहाने सफर में यहाँ,
फिसलन भरे मोड़ हालात के।
जल रहा है बदन, धूनी की तरह,
धुएँ उठ रहे, भीगे जज़्बात के।

कसक को पिरोए, वो फिरता रहा,
जिया भी कभी, या कि मरता रहा।
सुनेगा भी कौन, दुपहरी की व्यथा,
सब तलबगार रंगीन दिन-रात के।

कोई तो साथ हो, पल भर के लिए,
निभा पाया कौन उम्र भर के लिए,
मुकम्मल समझ लूँगा ये ज़िन्दगी,
फिर हसीं दौर महके तेरे साथ के।

कोई कितना सँवारेगा रिश्ते यहाँ,
आग लगने पर ही उठता है धुँआ।
मान लेना मोहब्बत ही बाकी नहीं,
दाग दिखने लगे जब माहताब के।

अब दुआ बेअसर, दवा बेज़ार है,
सफ़ीना की उम्मीद पतवार है।
हक़ीकत सी होगी सुनहरी सुबह,
थक गये पँख, उड़ते हुए ख़्वाब के।


...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
    #9424142450#

Friday, 23 November 2018

शायद गिरी हो बिजली, हम पर अभी अभी...

क्यों छूट गया हाथ से, आँचल का वो कोना।
दुनिया मेरी आबाद थी, जिस के तले कभी।।

एक तेरा साथ होना, था सबकुछ हमारे पास।
हासिल जहां ये हमको, लगता है मतलबी।।

परमपिता का जाने, ये कैसा अज़ीब न्याय।
जिसको उठा ले जाये, चाहे वो जब कभी।।

सहमी हुई है  धड़कन,  बदहवास  है  साँसें।
शायद गिरी हो बिजली, हम पर अभी अभी।।

ये नज़रें तलाशती हैं,  हर  ओर  तुझे माँ।
आ जाओ दो घड़ी तो, खिल उठेंगे हम सभी।।


...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐

नवम पुण्यतिथि पर "ममतामयी माँ "को अश्रुपूरित शब्दांजली...

पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...