Tuesday 28 August 2018

पतझड़ का मौसम है...




जो भी हो जाए कम है,
क्यों तेरी आँखें नम हैं?
देते हैं  ज़ख्म  अपनें,
मिले गैरां से मरहम है।

तू अपनी राह चला चल,
पीकर अपमान हलाहल।
या मोड़ दिशा हवाओं के,
गर तुझमें भी कुछ दम है।

न्याय सिसक कर रोए,
अन्याय की करनी धोए.
यहाँ झूठ, फ़रेब के क़िस्से,
नित लहराते परचम हैं।

नैतिकता हुई है घायल,
संस्कार ने बाँध ली पायल।
किस सत्य की खोज में है?
यहाँ सत्य तो एक वहम है।

सोने की चिड़िया खो गई,
करुणा और ममता सो गई.
मतलब और स्वार्थ के युग में,
विपदा है, दुःख है, गम है।

सुखदेव और बिस्मिल भूले,
अब कौन भगतसिंह झूले?
आज़ाद है; बस किस्सों में,
मेरे देश का ये आलम है।

अफ़सोस करें भी कैसे,
हम जीने लगे हैं ऐसे।
अब कौन सँवारे गुलशन,
यहाँ पतझड़ का मौसम है।

यहाँ पतझड़ का मौसम है।
यहाँ पतझड़ का मौसम है।

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐

Friday 24 August 2018

शायद वही मशाल हूँ...


अज़ल से जल रहा है जो,
शायद वही मशाल हूँ...
जवाब हूँ सवाल का,
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

किसी को क्या बताऊँ मैं,
मंज़िल भी कैसे पाऊँ मैं...
नज़र  उठे  हैं  बेधड़क ,
क्यूँ सर भला झुकाऊँ मैं...
इंकलाब हूँ ज़हीन सा,
या महज एक बवाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...

पला हूँ  धूप -छाँव में,
गली, शहर और गाँव में...
मैं गीत लिख रहा मधुर,
इस आतिशी तनाव में...
कभी दोपहर सा तेज था,
अब शाम सा निढाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...

न हूँ झील का; नाजुक कंवल,
न ही वक्त सा, मैं हूँ सबल...
जो भी किया, क्यूँ कर किया,
नैन हैं; ये क्यों सजल...
छूकर बदन महक उठे,
वो ख़ुशनसीब गुलाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...
जवाब हूँ सवाल का,
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय 🌹🌹
#9424142450#

Sunday 5 August 2018

जन्नत हो गयी ये क़ायनात...




जो साथ रहे परछाई सा,
उस पाक दुआ की बात है क्या...
जन्नत हो गयी ये क़ायनात,
देखो यारों का साथ है क्या...


कुछ अलबेले मस्ताने हैं,
कुछ मस्ती भरे खजाने हैं...
मन सराबोर हो झूम उठा,
महके-महके जज़्बात हैं क्या...


ये सुबह नई मुस्काई है,
संदेशा उनका लायी है...
बिन बात खिले हैं चेहरे क्यों,
यारों की कोई बात है क्या...


ओ मतवाली पुरवा न मचल,
बैरन यूँ ना इठला कर चल...
मैं खो जाता हूँ यादों में,
वो गुज़रे हुए लमहात है क्या...


अब आइना हैरान है क्यूँ,
इतना खुश ये इंसान है क्यूँ...
वो क्या जाने, वह क्या समझे,
अपने यारों का साथ है क्या...



...©रवीन्द्र पाण्डेय 🌹🌹

*9424142450#

पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...