Friday, 24 August 2018

शायद वही मशाल हूँ...


अज़ल से जल रहा है जो,
शायद वही मशाल हूँ...
जवाब हूँ सवाल का,
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

किसी को क्या बताऊँ मैं,
मंज़िल भी कैसे पाऊँ मैं...
नज़र  उठे  हैं  बेधड़क ,
क्यूँ सर भला झुकाऊँ मैं...
इंकलाब हूँ ज़हीन सा,
या महज एक बवाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...

पला हूँ  धूप -छाँव में,
गली, शहर और गाँव में...
मैं गीत लिख रहा मधुर,
इस आतिशी तनाव में...
कभी दोपहर सा तेज था,
अब शाम सा निढाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...

न हूँ झील का; नाजुक कंवल,
न ही वक्त सा, मैं हूँ सबल...
जो भी किया, क्यूँ कर किया,
नैन हैं; ये क्यों सजल...
छूकर बदन महक उठे,
वो ख़ुशनसीब गुलाल हूँ...

अज़ल से जल रहा है जो...
शायद वही मशाल हूँ...
जवाब हूँ सवाल का,
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...
या ख़ुद ही एक सवाल हूँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय 🌹🌹
#9424142450#

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