Sunday, 29 April 2018

बाबुल के आँगना सा, ये सारा शहर होता....

कट जाती उम्र हँस कर, कुछ ऐसा बसर होता,
ये ज़िन्दगानी सचमुच, पंछी-सा सफर होता।

ना फ़िक्र में हम घुलते,  न जाया होती  उमर,
मस्ती में मुस्कुराते,  सब  दर्द  सिफ़र होता।

कोई नहीं पराया,   सब  दिल के पास  होते,
परवाह सबकी होती, जन्नत-सा ये घर होता।

चिड़ियों को आबोदाना, मौसम को नसीहत,
राही को दे जो साया, कोई ऐसा शज़र होता।

मासूम कलियाँ खिलतीं,  बेख़ौफ़  मुस्कुरा,
बाबुल के आँगना सा, ये सारा  शहर होता।

ख़्वाहिश यही 'रवीन्द्र',  सब खुश रहें  सदा,
ऐ काश के अब मेरी, दुआओं में असर होता।

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐
    *9424142450*

Friday, 13 April 2018

हम से ही नज़रें चुराने लगे....

मौसम ज़रा ज़र्द हो क्या गया,
वो हम से ही नज़रें चुराने लगे।

कल तक रहे धड़कनों की तरह,
साये से भी पीछा छुड़ाने लगे।

काँच से भी नाज़ुक अरमां मेरे,
छुआ तो लहू ये बहाने लगे।

शुक्र है तुम्हें सम्भलना आ गया,
हम आँखों से मोती गिराने लगे।

तनहा कटे क्यों उमर का सफ़र,
यादों की महफ़िल सजाने लगे।

हो सके रौशनी राहों में तेरी,
यही सोच खुद को जलाने लगे।

मिलेंगे कई मोड़ रुसवाईयों के,
डगर प्रेम कोई जो जाने लगे।

जो चाहो तो महसूस करना हमें,
हम भी घटा बन के छाने लगे।

दिल ये मेरा गोया दिल ही तो है,
भला हम इसे क्यों समझाने लगे।

आहट जरा-सी हुई क्या 'रवीन्द्र' ,
सौ अरमान दिल में सजाने लगे।

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
*9424142450#

पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...