Tuesday, 4 April 2017

कितने कसक हैं दिल में.....




कितने कशक हैं दिल में, यूँ ही पल रहे...
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कितने कशक है दिल में, यूँ ही पल रहे,
कोई छेड़ दे इन्हें फिर, द्वन्द क्यूँ न हो..?

मेरी बंद मुठ्ठियों में हैं, अक्षर भरे हुए,
मुठ्ठी खोल दूँ जो, फिर छंद क्यूँ न हो..?

सूरज की ओज पाकर, ओस गुम हुआ,
भौरों की चाह में फिर, मकरंद क्यूँ न हो..?

प्रियतम की राह देखें, धड़कन को थामकर,
मधुमास में समय गति, फिर मंद क्यूँ न हो..?

.....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

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