कितने कशक हैं दिल में, यूँ ही पल रहे...
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कितने कशक है दिल में, यूँ ही पल रहे,
कोई छेड़ दे इन्हें फिर, द्वन्द क्यूँ न हो..?
मेरी बंद मुठ्ठियों में हैं, अक्षर भरे हुए,
मुठ्ठी खोल दूँ जो, फिर छंद क्यूँ न हो..?
सूरज की ओज पाकर, ओस गुम हुआ,
भौरों की चाह में फिर, मकरंद क्यूँ न हो..?
प्रियतम की राह देखें, धड़कन को थामकर,
मधुमास में समय गति, फिर मंद क्यूँ न हो..?
.....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
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