सबब हम ने जाना इस बात का...
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सबब हम ने जाना इस बात का,
बे ताअल्लुक़ सी मुलाक़ात का...
दबाया हथेली तो शरमा गये,
हसीं वाकया ये जुमेरात का...
गली का किनारा ना भूला गया,
कभी था गवाही मेरी बात का...
हिना रँग लाती कहाँ आज़कल,
आँखों मे मौसम है बरसात का...
ख़्वाबों में ही, पर मिलो तो सही,
क़दर लाज़मी है जज़्बात का...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
खुशियों की फ़ितरत परछाईयाँ सी,
नज़र में है लेकिन, हासिल नहीं...
ख़्वाबों की भीड़ में, घुटन ये कैसी,
क्या नींद मेरी इस क़ाबिल नहीं..?
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
Excellent creation
ReplyDeleteआभार,प्रिय अभिषेक....
ReplyDeleteUtkrisht rachna...
ReplyDeleteशुक्रिया जी
DeleteAnother master piece by you.... Fantastic
ReplyDeletethanks dear... Vaibhav
DeleteAnother master piece by you.... Fantastic
ReplyDeleteबहुत खूब कही
ReplyDeleteधन्यवाद,
Deleteकविता जी...