मेरी खामोशियाँ ही अब, मेरी बातें सुनाती हैं,
दीवाना बन के तन्हाई, वो देखो गीत गाती हैं...
कभी गुजरा था राहों से, मंज़िल की चाहत में,
वही राहें पकड़ बाहें, मुझे मंज़िल दिखाती हैं...
वक़्त ने करवट, बदल क्या ली मेरे मालिक,
ख़ुशी बेताब मिलने को, शोहरत झूम जाती हैं...
कभी मज़बूर थी पलकें, संभल पाते नहीं आंसू,
वही आँखें उम्मीदों के, सौ सपने दिखाती हैं...
कभी था आशना हमको, महफ़िल की रौनक से,
हमें अब रौनक-ए-महफ़िल में, तन्हाई सताती है...
ज़रा नज़रें इनायत हो, रही ये आरज़ू 'रवीन्द्र',
वही मयकश गुल ए गुलज़ार, आँखों से पिलाती है...
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
*9424142450#
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