Tuesday, 11 April 2017

दिन ने मुठ्ठी खोल दिये.....


दिन ने मुठ्ठी खोल दिये, धूप मचल कर बिखर गयी...
अँधेरों से परेशां ये जमीं, खुश होकर जैसे निख़र गयी...
आबोहवा अलसाई सी, बादल की शरारत हो जैसे...
दौड़ लगाती समय सुई, पल में कितनी सँवर गयी..

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

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पल दो पल के साथ का.....

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