क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ...
-------------***------------
क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
मेरा रोम रोम, है तेरी धरा,
एक फूल मैं, तुझे चमन कहूँ...
क्या मन कहूँ.....
तेरे बाज़ुओं में, वो जान है,
थामे तिरंगा, महान है...
कई रंग है, जाति धर्म के...
तुझे सरिता माँ, सनातन कहूँ...
क्या तन कहूँ....
तेरी गोद में, केसर खिले,
पाँवों तले, सागर मिले...
तेरी बाहों की, क्या विशालता,
कभी भुज कहूँ, कभी असम कहूँ...
क्या तन कहूँ...
कई बोलियाँ, कई लेखनी,
त्यौहारों की है, नव रागिनी...
खुशबू लिए, हरीभरी वादियाँ,
सुर सागर है माँ, तुझे नमन कहूँ...
क्या तन कहूँ, क्या मन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
....©रवीन्द्र💐💐
*9424142450#
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क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
मेरा रोम रोम, है तेरी धरा,
एक फूल मैं, तुझे चमन कहूँ...
क्या मन कहूँ.....
तेरे बाज़ुओं में, वो जान है,
थामे तिरंगा, महान है...
कई रंग है, जाति धर्म के...
तुझे सरिता माँ, सनातन कहूँ...
क्या तन कहूँ....
तेरी गोद में, केसर खिले,
पाँवों तले, सागर मिले...
तेरी बाहों की, क्या विशालता,
कभी भुज कहूँ, कभी असम कहूँ...
क्या तन कहूँ...
कई बोलियाँ, कई लेखनी,
त्यौहारों की है, नव रागिनी...
खुशबू लिए, हरीभरी वादियाँ,
सुर सागर है माँ, तुझे नमन कहूँ...
क्या तन कहूँ, क्या मन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
....©रवीन्द्र💐💐
*9424142450#
Naman....Bahut hi khubsurat kavita
ReplyDeleteपंक्तियाँ पसंद करने के लिये आभार सहित
Deleteधन्यवाद वैभव जी,
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजय हिन्द
आभार आदरणीया कविता जी,
Deleteजय हिन्द
शानदार ... भारत वर्ष की उचित व्याख्या
ReplyDeleteजय हिन्द
ReplyDeleteमहराज