Friday, 21 April 2017

क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ...

क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ...
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क्या मन कहूँ, क्या तन कहूँ,
सर्वस्व तेरा, ऐ वतन कहूँ...
मेरा रोम रोम, है तेरी धरा,
एक फूल मैं, तुझे चमन कहूँ...
क्या मन कहूँ.....

तेरे बाज़ुओं में, वो जान है,
थामे तिरंगा, महान है...
कई रंग है, जाति धर्म के...
तुझे सरिता माँ, सनातन कहूँ...
क्या तन कहूँ....

तेरी गोद में, केसर खिले,
पाँवों तले, सागर मिले...
तेरी बाहों की, क्या विशालता,
कभी भुज कहूँ, कभी असम कहूँ...
क्या तन कहूँ...

कई बोलियाँ, कई लेखनी,
त्यौहारों की है, नव रागिनी...
खुशबू लिए, हरीभरी वादियाँ,
सुर सागर है माँ, तुझे नमन कहूँ...

क्या तन कहूँ, क्या मन कहूँ,
सर्वस्व तेरा,
वतन कहूँ...

....©रवीन्द्र💐💐
*9424142450#

6 comments:

  1. Naman....Bahut hi khubsurat kavita

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    1. पंक्तियाँ पसंद करने के लिये आभार सहित

      धन्यवाद वैभव जी,

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  2. बहुत सुन्दर
    जय हिन्द

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    Replies
    1. आभार आदरणीया कविता जी,


      जय हिन्द

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  3. शानदार ... भारत वर्ष की उचित व्याख्या

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  4. जय हिन्द

    महराज

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