Saturday, 1 April 2017

किसी रोज खुला हो आसमां...



किसी रोज खुला हो आसमां...
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किसी रोज खुला हो आसमां, बाहें फैलाये सारा जहां...
मुमकिन है उस दिन सूरज की, बादल से यारी हो जाए...

धरती पर हरियाली चादर, हर डाल लदी हो जामुन से...
अमन की खुश्बू हवा में हो, हर दिशाएँ न्यारी हो जाए...

महकेगी जब सौंधी मिट्टी, हर बूँद पसीना हो मोती...
राखी बाँधे जब हर बहना, ये जग फुलवारी हो जाए...

हर गाँव बने जब वृन्दावन, चोरी भी हो तो बस माखन...
बन जाऊँ 'रवीन्द्र' सुदामा मैं, हर मित्र मुरारी हो जाए...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

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