Saturday, 1 April 2017

ओ सुबह की लालिमा...


 ओ सुबह की लालिमा...
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ओ सुबह की लालिमा, जीवन सबका संवार दे...
ऐ चमकते धूप तू, सर्वत्र जीवन प्रसार दे...

साँझ की सुन रौशनी, ख़ुशनुमा कर ज़िन्दगी...
रात की शीतल हवा, जहां में सबको प्यार दे...

सुन गगन फैला हुआ, सबको दे सद्भावना...
मोहक महकती ऐ धरा, ख़ुशनुमा से विचार दे...

दूर तक जाती दिशाएँ, हर शख़्स को दे हौसला...
स्याह काली रात सुन, तू सुकून दे और करार दे...

बहती नदी आबाद रह, दे आगे बढ़ने की ललक...
बरखा तू दे नई ज़िन्दगी, नित प्रेम की फ़ुहार दे...

ठहरे हुए ऐ ताल सुन, तू पीर लेकर धीर दे...
पर्वत तू ऊँचा मान रख, नव सोच दे विस्तार दे...

और क्या माँगू 'रवीन्द्र', सब खुश रहें आबाद हों...
हे मोहना तू प्रेम दे, ब्रज सा सरल संसार दे...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

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