Sunday, 2 April 2017

ढूंढ रहा मन फिर वो आँगन...



ढूंढ रहा मन फिर वह आँगन,
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ढूंढ रहा मन फिर वह आँगन, कोई तो बतलाये ना...
फुदक रही गौरैया जिसमें, ऐसा नज़र क्यों आये ना...

साँझ घनेरी घिर जाये जब, तुलसी का बिरवा महके...
धुआँ उठे फिर छप्पर से, कोई ऐसी दुनिया लाये ना...

महक उठे सब बाग़ बगीचे, हरियर चुनरी लहराये...
ताल तलैया मचल उठे, क्यूँ ऐसी बरखा आये ना...

दादा के जूतों में भरकर, दोनों पैर है थिरक रहे...
हो नींद वही बचपन वाली, कोई ऐसी लोरी गाये ना...

आँगन है पर सूना -सूना, चिकनी सारी दीवार हुई...
फुदक फुदक कर दाना चुगने, गौरेया फिर आये ना...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐
विश्व गौरैया दिवस पर समर्पित पंक्तियाँ....💐💐🙏🏽

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