Friday, 19 May 2017

समुंदर खारा हो गया...

समुंदर खारा हो गया...
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बैठ गया कुछ पल के लिए, मैं समुंदर के तीर...
बाँट लूँ ये सोच कर, कुछ  मन के अपने पीर...

आने लगी क्षितिज से, जैसे प्रेम की बयार...
किनारे तक आई  जिसमें, हो कर लहर सवार...

छूने लगी पैरों को, लहर की हर चाल...
जैसे पूछता हो कोई, अपनों से दिल का हाल...

था बोझ मन में खूब, और ज़माने की अनकही...
होठों पे आ सकी ना बात, बन आंसू ही बही...

लगा रेत पर उकेरने, मैं अनमना सा चित्र...
झट से मिटा देती उसे, लहर थी विचित्र...

मैंने सोचा शायद वो, लहर के मन ना भाय...
देती है चित्र हर बार, इसीलिये वो मिटाय...

लहर नें कहा ऐसी कोई बात नहीं है...
ना सोचना समुंदर के जज़्बात नहीं है..?

मैं भी समझ सकती हूँ तेरे मन की पीर...
मत उकेर रेत पर कोई दर्द की तहरीर...

ये रेत कुछ पलों के लिए दर्द क्यों सहे...
ये मीत मेरे मन के हैं, मेरे ही संग रहे...

गर लिखनी है दिल की दास्ताँ, तुझे ऐ मेरे यार...
तो रोक आँसुओ को, बह रहे हैं जार जार...

मत हो अधीर इतना, ये तेरा काम नहीं है...
हर बात से घबराये, वो इंसान नही है...

कहते हो समुंदर ने कुछ सँवारा नही है...
यूँ ही तो समुंदर हुआ खारा नहीं है...

सबके दुखों को सुनती है ना कुछ भी जताती...
दुनियां रहे ना सूखा, सोच मेघ बनाती...

खुद के अगन को मन में समाये हुए है...
कितने ही ज़लज़लों को ये बुझाए हुए है...

पलते हैं कई जीव, पाते हैं निवाले...
लगाये गहरा गोता वो मोती भी निकाले...

कभी सुनी भी होगी समुंदर की वह व्यथा...
अमृत के लिए देवों और असुरों ने जब मथा...

सब ग्रहण किये सुधा, गरल छोड़कर गये...
नाविक भी सतह रहे, पाल मोड़कर गये...

झाँका न किसी ने भी, उसके मन के ही भीतर...
दिखता है जितना गहरा, उससे ज्यादा समुंदर...

दुखियों को काँधा दे के, ये सहारा हो गया...
पी कर जहान के आंसू, समुन्दर खारा हो गया...

...रवीन्द्र पाण्डेय...

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