ढल ही गया दिन, शाम आते आते,
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ढल ही गया दिन, शाम आते आते,
चलते नहीं तो, यूँ ही ठहर जाते...
बहल तो गया दिल, कुछ पल को मौजूं,
मिलते ना उनसे, तो दिल क्या लगाते...
बारिश की बूंदें, लटों से हैं लिपटी,
फ़ना हो रहे, गालों पे आते आते...
मिला जो भी मुझको, बेशक उसी से,
हसीं जख़्म दिल के, किसको दिखाते..?
सुबह सी मिली वो, रहा साथ दिन सा,
बिछड़ सी गयी है, शाम आते आते...
फ़ीका है अब, जायका ज़िन्दगी का,
बिन उसके 'रवीन्द्र', हम क्या गीत गाते...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#
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