शबनमी सुरमई रात ढलने लगी...
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शबनमी सुरमई रात ढलने लगी,
उम्मीदों का सूरज जवां हो गया...
शिकारा सतह पे मचलने लगा,
छूते ही लहर इक फ़ना हो गया...
ज़ुल्फ़ है या घटाओं की जादूगरी,
बिखरते ही दिलकश समां हो गया...
छुपाओ ना अब चाँद को हाथ में,
रुख़ ए दीदार को शब धुँआ हो गया...
उनकी गली का कोई दे पता,
इश्क़ में 'रवीन्द्र' बदगुमां हो गया...
....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#...
वाह, बहुत खूब।
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
Deleteसर, बहुत सुंदर प्रस्तुति है
ReplyDeleteशुक्रिया प्रिय अभिषेक...
Deleteअति सुंदर रविन्द्र भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteमित्र अलोक जी
प्रयोगतः
ReplyDeleteShaandaar bhaiya ....bahut hi badhiya
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