Friday, 14 April 2017

शबनमी सुरमई रात ढलने लगी...




शबनमी सुरमई रात ढलने लगी...
---------------***---------------



शबनमी सुरमई रात ढलने लगी,


उम्मीदों का सूरज जवां हो गया...



शिकारा सतह पे मचलने लगा,


छूते ही लहर इक फ़ना हो गया...



ज़ुल्फ़ है या घटाओं की जादूगरी,


बिखरते ही दिलकश मां हो गया...



छुपाओ ना अब चाँद को हाथ में,


रुख़ ए दीदार को शब धुँआ हो गया...



उनकी गली का कोई दे पता,


इश्क़ में 'रवीन्द्र' बदगुमां हो गया...


....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

*9424142450#...

8 comments:

  1. सर, बहुत सुंदर प्रस्तुति है

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया प्रिय अभिषेक...

      Delete
  2. अति सुंदर रविन्द्र भाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद
      मित्र अलोक जी

      Delete
  3. Shaandaar bhaiya ....bahut hi badhiya

    ReplyDelete

पल दो पल के साथ का.....

पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...