कान्हा की बंशी सबको बुलाए,
राग-प्रेम का गीत सुनाए...
आँख खुले तो, जग वृन्दावन,
स्वप्न में मोहन भाए...
प्रीत की डोर बंधी है ऐसी,
भोर सुहानी, पुरवा जैसी,
तन-मन है इठलाए...
फिर कान्हा क्यों सताए...
आस मेरी है ब्रज बालाएं,
जीवन के नित आस जगाएं,
अंग अंग है मुस्काए...
मन मोहन हो जाए...
आस भरे नैनों को मूंदें,
खो कर मन, मोहन को ढूंढें,
इत उत नित सब पाए...
मन ही मन मुस्काए....
राधा रखे है, मान हिना की,
भेद न जाने, हम यमुना की,
गहरे गोते वो लगाए...
जीवन राह दिखाए...
मन मोहन हो जाए...
मन मोहन हो जाए...
...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
जय श्री कृष्णा....
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