पढ़ ना पाया, रही आँखों में कुछ नमी...
मैं तो बढ़ता रहा, मंजिलों की तरफ...
लोग लिखते रहे, बस एक मेरी कमी...
नहीं अफ़सोस, हासिल भले कुछ नहीं...
उस फ़लक से है बेहतर, मेरी ये जमीं...
सुन ओ तकदीर, ग़र कहीं रहता है तू...
उस फरिश्ते से बेहतर, मैं आम आदमी...
चाँद तारे भी देंगे, गवाही 'रवीन्द्र',
याद आना मेरा, होगा तब लाज़मी...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#
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