Saturday, 15 July 2017

बाज़ी ये कैसे पलटती नहीं...

मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर,
यकीं है सवेरा हुआ हो कहीं...

क्या होती है रातें, न जानू सजन,
रोशनी तेरे यादों की छँटती नहीं...

डगर हो, सफ़र हो, मंजिल तुम्हीं,
बिन तुम्हारे घड़ी एक कटती नहीं..

खुला आसमां और हम तुम वहाँ,
नेमत क्यूँ ऐसी बरसती नहीं..?

करो फैसला मेरे हक में 'रवीन्द्र',
देखें बाज़ी ये कैसे पलटती नहीं..?

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#

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