Sunday, 9 July 2017

उम्मीदों का सूरज... तू आ निकल...

कल तक तेरी तपिश से, हैरान रहा मैं...
आज ढूँढती है नजरें, बन बावरा तुझे...

एक झलक दे भी दे, अब और न तड़पा...
मिल जायेगा सुकून, और आसरा मुझे...

एक साथ तेरा रहते, आबाद थी दुनिया...
नजरें क्या तूने फेरी, भूला जहां मुझे...

सियासत के बादल, कहीं और जा बरस...
रिश्तों की फिसलनों से, अब ले बचा मुझे...

अब के सजन सावन, दीवाना सा लगे...
तेरी याद दिलाकर ये, तड़पायेगा मुझे...

ओ मेरी उम्मीदों का, सूरज तू आ निकल...
खोई हुई मेरी परछाई, वापस दिला मुझे...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#

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