Friday, 30 June 2017

धूप मुलाकातों की...

उम्मीद-ए-रौशनी में, शब गुजार लेता हूँ...
धड़कनों की सरगम से, सुर उधार लेता हूँ...

काफ़िले वो खुशियों के, मेरी गली आएँगे...
देख के आईना, खुद को संवार लेता हूँ...

छोड़िये वो बातें, जो दिल को दुखा देती हैं...
एक मुस्कुराहट पे, सब कुछ निसार देता हूँ...

धूप मुलाकातों की, इसलिये भी जरूरी है......
एक झलक पा के, दुआएँ हजार लेता हूँ...

दिल में बसाया है ग़र, दुनिया को बताना क्या?...
शबनमी सी यादों को, दिल के तार देता हूँ...

बंद मुठ्ठियों में है, नेमत खुदा की 'रवीन्द्र',
आलम-ए-तन्हाई में, खुद को पुकार लेता हूँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#

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