रूठ जाये ये जहां, मुझको कोई गम नहीं...
एक तेरा साथ यारा, महफ़िलों से कम नहीं...
क़ातिलाना हर अदा, गुस्ताख़ हैं तेरी नज़र,
सब उलझने बेमायने, जो तेरे पेंचोखम नहीं...
आशिक़ी या दिल्लगी, सोचेंगे हमने क्या किया,
है मगर मालूम, कोई महबूब सा मरहम नहीं...
कीजिएगा इक इशारा, मिलने आएँगे वहाँ,
जिस जगह सैलाब ही सैलाब हो शबनम नहीं...
कोई कहता है दीवाना, कोई आवारा मुझे,
एक तेरा साथ, और चाहत कोई हमदम नहीं...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
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