Monday 25 September 2017

शब्द ही बीज हैं, शब्द ही हैं शज़र...



शब्द की बानगी, शब्द के हैं हुनर,
शब्द से हैं घिरे, ज़िन्दगी के डगर...

शब्द उम्मीद हैं, शब्द दीवानगी,
शब्द से कई रिश्ते, हैं जाते संवर...

शब्द आवाज है, शब्द अंदाज़ है,
शब्द से है घडी, शब्द से है पहर...

शब्द अभिमान हैं, शब्द ही शान हैं,
शब्द से है गली, शब्द से है शहर...

शब्द खेलेंगे जब, कभी जज्बात से,
शब्द घुल जाएंगे, बन के मीठा जहर...

शब्द को फिर संभालें आओ सभी,
शब्द ही बीज हैं, शब्द ही हैं शज़र...

शब्द तुमने कहे, वो मुझे मिल गये,
शब्द ने गुदगुदाया, मुझे रात भर...

शब्द की बातें अब, क्या कहूँगा 'रवींद्र',
शब्द से मेरी दुनियां, शब्द से मेरा घर...


...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐

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