Friday 22 September 2017

कोशिशें होंगी मुकम्मल, कारवाँ बन जाएगा...




है निज़ामों का शहर, यहाँ बात इतनी जानिए,
सर झुकाएंगे अगर, सजदा नहीं कहलाएगा...

नज़ाफ़त की ये हवा, सब कुछ उड़ा ले जाएगी,
है चिराग ए इल्म जो, कब तक छुपा रह पाएगा...

अब तो बाजू खोलिए, कैसी ज़हमत-ए-दासतां,
कोशिशें होंगी मुकम्मल, कारवाँ बन जाएगा...

ना रहे मन में भरम, अब ना कोई मलाल हो,
लिखा है जो नसीब में, वो बर्क सा लहराएगा...

चाह बरक़त की सदा, रखिएगा दिल में 'रवीन्द्र',
हौसला मत हारिेये, होगा जो देखा जाएगा...

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐

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