Saturday 17 April 2021

ये कौन से भँवर में, आ गई है ज़िन्दगी...

ये कौन से भँवर में, आ गई है ज़िन्दगी।

खैरियत के मायने, ज़िंदा बचे हैं हम।।


ख़्वाब उड़ गये सभी, हो कर धुआँ धुआँ।

चैन ओ सुकूं फ़ना, नींद आती है कम।।


सोचा था बसाएँगे, बस्ती भी चाँद पर।

सूनी पड़ी है धरती, रहने को लोग कम।।


किससे हुई ये चूक, गफ़लत ये है कैसी।

थम सी गई है धड़कन, ऑंखें हुई हैं नम।।


कराहते गली, शहर, सिसक रहे श्मशान।

हो गए हैं नाकाफ़ी, रूपये, टका, दिरहम।।


www.kaviravindra.com

छायाचित्र गूगल से साभार...



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