Saturday 12 August 2017

मैं ढूंढ रहा उस बचपन को, जाने कब कैसे फिसल गया...


मैं ढूंढ रहा उस बचपन को,
जाने कब कैसे फिसल गया...
रुकने को बोला था कितना,
देखो वो जिद्दी निकल गया...

अब की बार जो मिल जाये,
मैं उसकी कान मरोडूँगा...
कितना भी फिर वो गुस्साये,
नहीं उसकी बाँह मैं छोडूंगा...

लेकिन वो निश्छल बचपन भी,
कब लौट के फिर आ पाता है...
अक्सर फिर छोटे बच्चों में,
हमें अपनी याद दिलाता है...

मैं अपने काँधे सर रखकर,
जागे-जागे सो जाता हूँ...
बीते लमहों की यादों में,
ना चाह के भी खो जाता हूँ...

अफ़सोस भी होता है अब तो,
जाने क्यूँ इतना बड़ा हुआ...
वो माँ की गोदी छूट गयी,
जब से पैरों पर खड़ा हुआ...

अब यही जतन मैं करता हूँ,
बचपन आँखों में भरता हूँ...
बच्चों संग मिल जुल कर,
मैं ख़ूब शरारत करता हूँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
             *9424142450# 

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