मैं ढूंढ रहा उस बचपन को,*9424142450#
जाने कब कैसे फिसल गया...
रुकने को बोला था कितना,
देखो वो जिद्दी निकल गया...
अब की बार जो मिल जाये,
मैं उसकी कान मरोडूँगा...
कितना भी फिर वो गुस्साये,
नहीं उसकी बाँह मैं छोडूंगा...
लेकिन वो निश्छल बचपन भी,
कब लौट के फिर आ पाता है...
अक्सर फिर छोटे बच्चों में,
हमें अपनी याद दिलाता है...
मैं अपने काँधे सर रखकर,
जागे-जागे सो जाता हूँ...
बीते लमहों की यादों में,
ना चाह के भी खो जाता हूँ...
अफ़सोस भी होता है अब तो,
जाने क्यूँ इतना बड़ा हुआ...
वो माँ की गोदी छूट गयी,
जब से पैरों पर खड़ा हुआ...
अब यही जतन मैं करता हूँ,
बचपन आँखों में भरता हूँ...
बच्चों संग मिल जुल कर,
मैं ख़ूब शरारत करता हूँ...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
ख़ुशनुमा सा इक सफ़र है, आँख में पानी है क्या.!!!...... दिल लगाकर देख लीजे, ज़िन्दगानी है क्या...?
Saturday 12 August 2017
मैं ढूंढ रहा उस बचपन को, जाने कब कैसे फिसल गया...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
पल दो पल के साथ का.....
पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी रहा... ------------------------***-------------------- पल दो पल के साथ का, मुंतज़िर मैं भी...
-
ओस बन छू लूँ तुझे मैं, धुन्ध बन कर साथ हूँ। तन-बदन को ताज़गी दे, वो हसीन ख़यालात हूँ।। मैं तेरी राहों का रहबर, धूप में साया सघन। जो खुशी दे उम...
-
माँ बाप की होती हैं, ये पहचान बेटियाँ, बेटे जमीन हैं, तो आसमान बेटियाँ। बेटों से बढ़ा वंशवृक्ष, सत्य है मगर, देती हैं सदा उसे, फूल और पान बेट...
-
जरूरी है रस्मों का निभना-निभाना, अपनों से मिलना, सुनना-सुनाना। अगर ये ना हो, ज़िन्दगी है अधूरी, ना वादे मुकम्मल, ना अहसास पूरी।। आओ कि हम त...
No comments:
Post a Comment