Monday, 8 May 2017

एक रात है खामोश सी...



एक हरजाई के आये नहीं,
एक तन्हाई के जाये नहीं...
करवट बदलते रात में,
ख़्वाब उनके क्यों आये नहीं..?

एक उम्मीद है टूटे नहीं,
एक आस जो छूटे नहीं...
लहरें किनारे आ रही,
फिर भँवर क्यों आये नहीं..?

एक आईना ख़ामोश है,
एक मेहरबां रूठा हुआ...
कर लूँ मैं लाखों जतन,
पर क्यूँ उसे भाये नहीं..?

एक रात है खामोश सी,
एक दिन है बदगुमां हुआ...
फ़लक रहे कब तक तनहा,
तारों की बारात आये नहीं...

आओ मिलें ख़ुद से गले,
कर दूर सब शिकवे गिले,
वक़्त ये जो गुज़र रहा,
फिर लौट कर आये नहीं...

....©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
...*9424142450#

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