बरसों से प्यासी धरती पर, मेघा बन कर छाये हो तुम...
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बरसों से प्यासी धरती पर, मेघा बन कर छाए हो तुम...
आसां करने जीवन का सफर, साथी बनकर आए हो तुम...
पहले भी चलती थी पुरवा, खिलती थी कलियाँ बागों में...
दो सुंदर फूल खिला करके, ये आँगन महकाए हो तुम...
ये समय घूमता धुरी पर, दिन और रातें होती थी...
अब दूर गगन भी देखूँ जो, बन कर तारा छाए हो तुम...
ऋतुओं का रेला रहा यही, पतझड़ और सावन साथ रहे...
मैं खुद से करने लगा प्रेम, जो प्रेम गीत गाए हो तुम...
कभी दौड़ लगाता दूर-दूर, कभी पल भर में मायूस हुआ...
चंचल बेकल मेरे मन को, अपना बन कर भाए हो तुम...
...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐
*9424142450#
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