Friday, 8 December 2017

कुछ पल जो अकेला होता हूँ...

कुछ पल जो अकेला होता हूँ,
शब्दों की माला पिरोता हूँ,
लिखता हूँ अपने दिल की बात,
हँस कर आँखों को भिगोता हूँ..
कुछ पल जो....

दिल के जख्म दिखाएं किसे,
ये दर्द करें किसको बयां,
पथरीली ये जमीन हुई,
चुभता है अब आसमां,
इस लब पे बिखेरे हुए हँसी,
मैं दिल ही दिल में रोता हूँ...
लिखता हूँ अपने दिल की बात,
हंस कर आँखों को भिगोता हूँ...
कुछ पल जो....

भूला मुझे जहान तो क्या, 
जीवन है बियाबान तो क्या,
राह अंधेरे हैं मुमकिन,
कटते नहीं हैं ये पल छिन,
बिखरे हुए जो लमहें हैं,
यादों के हार पिरोता हूँ...
लिखता हूँ अपने दिल की बात,
हंस कर आंखों को भिगोता हूँ...
कुछ पल जो....

आएगा कोई राहों में,
भर लेगा मुझे बाहों में,
करवट बदल के रात कटे,
दिन सिसकी और आहों में,
ये धुँआ-धुँआ तनहा आलम,
ना जागता हूँ ना सोता हूँ,
लिखता हूँ अपने दिल की बात,
हँस कर आँखों को भिगोता हूँ...
कुछ पल जो....

कुछ पल जो अकेला होता हूँ...
शब्दों की माला पिरोता हूँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐

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