बड़ा खूब ढाया है तूने कहर,
लेकर उनींदे हमारी सभी,
देते हो क्यों अलसाया सहर...
कैसी है ख्वाबों की ये अनकही,
बातें दिलों की दिल मे रही,
सुहाना लगे है ख्वाबों का सफर,
बड़ा खूब ढाया है तूने कहर...
धड़कन क्यों बेताब हैं आजकल,
सदियों सा लागे हमें एक पल,
मंज़िल से है खूबसूरत डगर,
बड़ा खूब ढाया है तूने कहर...
ख्वाहिश जवां कैसे होने लगी,
तनहाई सिसक के है रोने लगी,
आंसू हैं या कोई मीठा जहर,
बड़ा खूब ढाया है तूने कहर...
खुशनुमा सुबह के ओ सौदागर,
बड़ा खूब ढाया है तूने कहर...
...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
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