ना मख़मली सी शाम दे...
नहीं भूलना मुझे वक़्त तू,
मेरे हौसलों को उड़ान दे...
जिस गली से गुज़र गया,
उस राह को आबाद रख...
जिस शहर में हूँ जी रहा,
उसे कोई तो पहचान दे...
आयेंगे खैरियत पूछने,
जिन्होंने कब का भुला दिया...
उन मेरे रहमो अजीज़ को,
मेरा प्यार भरा ये पयाम दे...
नहीं मेरी कोई ख़ता रही,
ना जुल्म लोगों ने किया...
ग़ुरबत में मैं जीता रहा,
मेरे हक में कोई ये बयान दे...
वो सुबह नई तो आयेगी,
मुझे प्यार से जो बुलाएगी...
यही जुस्तजू है मेरी,
उस रब को मेरा सलाम दे...
दिल की कही सुनता रहा,
यही ख़्वाब मैं बुनता रहा...
मेरी ज़िन्दगी के हो मायने,
मेरे नज़्म को तू कलाम दे...
...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
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