Friday 13 April 2018

हम से ही नज़रें चुराने लगे....

मौसम ज़रा ज़र्द हो क्या गया,
वो हम से ही नज़रें चुराने लगे।

कल तक रहे धड़कनों की तरह,
साये से भी पीछा छुड़ाने लगे।

काँच से भी नाज़ुक अरमां मेरे,
छुआ तो लहू ये बहाने लगे।

शुक्र है तुम्हें सम्भलना आ गया,
हम आँखों से मोती गिराने लगे।

तनहा कटे क्यों उमर का सफ़र,
यादों की महफ़िल सजाने लगे।

हो सके रौशनी राहों में तेरी,
यही सोच खुद को जलाने लगे।

मिलेंगे कई मोड़ रुसवाईयों के,
डगर प्रेम कोई जो जाने लगे।

जो चाहो तो महसूस करना हमें,
हम भी घटा बन के छाने लगे।

दिल ये मेरा गोया दिल ही तो है,
भला हम इसे क्यों समझाने लगे।

आहट जरा-सी हुई क्या 'रवीन्द्र' ,
सौ अरमान दिल में सजाने लगे।

...©रवीन्द्र पाण्डेय 💐💐
*9424142450#

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