Monday 26 June 2017

उम्मीदों का मौसम जवां हो गया...

बूंदे बारिश की टिप-टिप टपकने लगी,
फिर उम्मीदों का मौसम जवां हो गया...

हुस्न की क्या अज़ब है ये जादूगरी?

आ के गालों पे मोती फ़ना हो गया...

ये सुबह शबनमी गुनगुनाने लगी,

ख़ौफ रातों का जाने कहाँ खो गया..?

तपिश धूप की लो कहीं खो गयी,

खिजां का वो मौसम धुआँ हो गया...

देखो तनहाई बैरन सिमटने लगी,

तेरे आने से दिलकश समां हो गया...

दिल मचलने लगा है यही सोच कर,

फिर से ख़्वाबों का अब कारवां हो गया...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

*9424142450#

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